Sunday, 1 December 2019

मिसाल बना जननेता मनजीत धनेर की रिहाई के लिए लड़ा संघर्ष!

■जनता की कचहरी ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला उल्टा दिया!

साथी मनजीत धनेर की उम्रकैद बरकरार रखने के सर्वोच्च न्यायालय के 3 सितंबर के निर्णय को पंजाब की जनवादी लोकलहर द्वारा शासकों द्वारा दी गई चुनौती के रूप में स्वीकार किया और शासकों के इस हिसाब को चुकता करने के लिए पंजाब की जनवादी ताकतों ने इस निर्णय के विरुद्ध शानदार संघर्ष आरम्भ किया और सफलता प्राप्त की। मनजीत धनेर की सजा रद्द करवाने के लिए चले इस संघर्ष के संघर्ष - स्वरूपों के पक्ष से और पंजाब की आम जनता के विभिन्न हिस्सों को संघर्ष के मैदान में खींच लाने समेत अन्य कई कीर्तिमान निर्मित किए हैं। यह केस 22 साल पहले के किरनजीत कौर के बलात्कार और कत्ल कांड से जुड़ा हुआ है, जिसमें साथी मंजीत धनेर की अग्रणी भूमिका रही और बाद में इसी रंजिश के चलते साथी धनेर को झूठे केस में फंसा उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
आरंभिक तौर पर भारतीय किसान यूनियन (डकौंदा) और भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) ने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के विरुद्ध संघर्ष के मैदान में उतरने का आह्वान किया। इसके बाद पंजाब की समुचित जनवादी लोकलहर ने मनजीत धनेर की उम्र कैद की सजा जारी रखने के निर्णय को समुचित लहर के ऊपर प्रहार बताया और संघर्ष कमेटी बनाकर इस दमनीय निर्णय के विरुद्ध संघर्ष करना ठान लिया।
संघर्ष समिति में शामिल संगठन इस बात को पहले ही साफ़ करके चले कि मनजीत धनेर की उम्र कैद की सजा का मसला किसी एक संगठन मात्र से संबंधित कोई घटना नहीं है, बल्कि यह समुचित लोक लहर पर प्रहार है, जिसके अंतर्गत शासक लोकलहर को नेतृत्व रहित कर अंधकार में धकेलना चाहते हैं। इस निर्णय को भारत के राज सिहांसन पर बैठी भाजपा की सांप्रदायिक फासीवादी सरकार द्वारा जनवादी लोकलहर को कुचलने के लिए किए जा रहे दमन के प्रयत्नों के अंग के तौर पर लिया।
8 सितंबर को किसान, मजदूर, कर्मचारी, छात्र, नौजवान व अन्य जनवादी जन भागों को इकट्ठा कर 42 संगठनों का साझा मंच ‘मनजीत धनेर की उम्रकैद रद्द करवाने के लिए संघर्ष समिति, पंजाब’ बनाया गया और एक विशाल जन लामबंदी वाले संघर्ष के साथ में मनजीत धनेर की सजा रद्द करवाने की घोषणा की।
संघर्ष समिति द्वारा 11 सितंबर को आम जनता के प्रतिनिधिमंडल के साथ उम्र कैद की सजा रद्द करवाने के मुद्दे को लेकर राज्यपाल को मिला गया और प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पटियाला में स्थाई मोर्चे की घोषणा की गई। 20 सितम्बर को पटियाला में मोर्चा लगाने की घोषणा हो चुकी थी। संघर्ष समिति द्वारा जारी किया गया बड़ी संख्या में परचा और पोस्टर पूरे पंजाब में पहुंच चुके थे।घोषणा के पश्चात पटियाला पुलिस प्रशासन के हाथ पांव फूल गए। उन्होंने बातचीत के माध्यम से समाधान निकालने की बात की तो नेताओं ने पुलिस प्रशासन के इस भद्दे आचरण को भांपते हुए शहर की ओर कूच करने के अपने कार्यक्रम को जनसंगठनों की ताकत के बल पर बरकरार रखा। 20 तारीख को 4 हजार  की संख्या के साथ पटियाला की तरफ कूच कर रहे काफिलों को महमदपुर मंडी के आगे बड़ी संख्या में पुलिसबल तैनात कर रोका गया, जिसके कारण लोगों द्वारा शाम तक सड़क जाम की गई और फिर महमदपुर मंडी में स्थाई मोर्चे का और 22 तारीख को शहर में प्रदर्शन करने की घोषणा की।
प्रशासन ने अग्र तैयारी के साथ प्रदर्शन में रुकावट डालने हेतु रास्तों पर किलेबंदी कर दी तथा उसके पश्चात संघर्ष समिति के नेताओं के साथ बैठक की जोकि बेनतीजा रही और अंत में पटियाला प्रशासन को पंजाब सरकार के मुख्य सचिव के साथ बैठक करवानी पड़ी।
26 तारीख को जब संघर्ष समिति के नेताओं की मुख्य सचिव के साथ बैठक हुई तो यह बात सामने आई कि उच्च न्यायालय द्वारा मनजीत धनेर की सजा बहाल रखने के निर्णय के पश्चात जन दबाव के अंतर्गत सजा माफ करवाने के लिए भेजी अपील से संबधित फाइल पंजाब सरकार के पास ही दबी पड़ी रही। जानकारी मिली कि राज्यपाल ने पंजाब सरकार से मसले से संबंधित कुछ स्पष्टीकरण मांगे थे जो उन्होंने भेजे ही नहीं थे और फाइल अलमारियों में धूल फांकने के लिए वहीं दबा कर रख ली। नेताओं ने सरकार की इस लापरवाही को जानबूझकर लोक लहर पर गाज गिराने, उसको नेतृत्व रहित करने की भद्दी चाल समझते हुए रोष प्रकट किया और अपनी आपत्ति दर्ज करवाई। मीटिंग में पंजाब सरकार का लोक लहर के प्रति नफरत भरा आचरण और धनाढ्यों के प्रति छिपी हुई वफादारी निभाने का मामला पूर्णत: स्पष्ट हो गया। जब नेताओं ने पंजाब सरकार के इस आचरण के प्रति कठोर रुख अपनाया तो मुख्य सचिव ने खुद फाइल राज्यपाल को भिजवाने का आश्वासन दिया।
26 की शाम को पटियाला में धरना खत्म करके संघर्ष समिति के नेता 30 तारीख को एक बड़ी संख्या लेकर मनजीत धनेर को पेश करवाने के लिए बरनाला की धरती पर जुट गया। 10 हजार से ज्यादा लोगों की संख्या ने बरनाला शहर में प्रदर्शन कर अनाज मंडी में रैली की। जन नेताओं ने भाषण देते हुए इस मौके पर शासक वर्ग के दमन करने के इन प्रयत्नों के विरूद्ध, लोकलहर को नेतृत्व रहित करने की भद्दी चालों के विरुद्ध विशाल साझा लोकलहर को मौजूदा दौर की एक आवश्यकता होने की बात को उभारा। अनाज मंडी से काफिलों ने बरनाला अदालत की तरफ चलना था और यह पहले से जानकारी में था कि अनाज मंडी से अदालत तक पहुंचने के लिए 45 मिनट लगते हैं तथा जब जनसमूह का अग्र भाग बरनाला अदालत पहुंच चुका था तो पश्च भाग को चलने में अभी 15 मिनट का समय और लगना था। इस मौके पर लोगों का दम खम देखने वाला था। नारों के साथ लोगों का जोशोखरोश शिखर पर था। अदालत को घेरा डाले हुए जनसमूह को देखकर प्रशासन की सांस फूली ही थी। आसमान गूंजाते नारों के साए में साथी मनजीत धनेर को पेश किया।इसके पश्चात विशाल जनसमूह प्रदर्शन करता हुआ जेल के द्वार पर पहुंचा और यहीं मनजीत धनेर के बाहर आने तक स्थाई मोर्चा लगाने की घोषणा की।
जेल के बाहर लगा यह मोर्चा तत्पश्चात ही संघर्षशील गांव के रूप में पूरे पंजाब में प्रसिद्ध हो गया। इस संघर्ष में समाज का प्रत्येक तबका समर्थन में आकर खड़ा हुआ है। यहां यह संघर्ष जेल के आगे स्थाई मोर्चे के अनन्य संघर्ष के स्वरूप के पक्ष से नई पूर्णता को प्राप्त करके गया, वहां साथी ही समाज के प्रत्येक तबके को खींच कर संघर्ष के मैदान में शामिल करने हेतू उदाहरण भी बना। जेल के आगे 54 दिन चले इस मोर्चे में मुख्य भूमिका किसान संगठनों उग्राहां व डकौंदा की रही, परंतु समय-समय पर लगातार संघर्ष समिति के अंग संगठन और अन्य जनवादी जनसंगठन भी इस मोर्चे का भाग बनती रहे हैं। 2 माह तक चले इस संघर्ष के काफिले लगातार और बड़े होते रहे। जेल के आगे स्थाई मोर्चे में 7 अक्टूबर को औरतों की विशेष एकत्रता हुई। कुल 4500 की संख्या में 3000 से ज्यादा संख्या सिर्फ औरतों की थी। उस दिन मंच की पूरी कार्यवाही औरतों ने संभाली। समाज में दूसरे दर्जे के नागरिक के तौर पर समझी जाती औरतों ने गांवों से आ संघर्ष में हिस्सा पाकर एक अनन्य किस्म का नमूना पेश किया। इस भागीदारी ने ‘जे औरत भी हिस्सा पावे, लोकलहर ते जोबन आवे’ (अगर औरत भी भागीदारी करे तो लोक लहर में चढ़ाव आए) के नारे को सच कर दिखाया है। औरतों ने पूरे दिन की अपनी कार्यवाही के माध्यम से और घंटा भर जेल का घेराव कर न सिर्फ संघर्ष के प्रति अपने गहरे ताल्लुक और अंगड़ाई लेती औरत मुक्ति लहर को प्रकट किया, बल्कि नेतृत्व करने के अपने सामर्थ्य का भी उत्कृष्ट नमूना पेश किया।
संघर्षशील गांव में बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों ने भागीदारी करके कलम, कला और संघर्षों की एकता को और मजबूत किया। 20 तारीख को विभिन्न विभागों के कर्मचारियों और 21 तारीख को मेडिकल प्रैक्टिशनरों के बड़े समूह धरने में शामिल हुए। 22 तारीख को संघर्ष ही गांव में छात्रों नौजवानों का दिन था। संघर्ष समिति के कई नेता जब मुख्यमंत्री के साथ बैठक के लिए चंडीगढ़ गए हुए थे, तब धरने में नौजवानों की सैलाब आया हुआ था। 10 हजार तक पहुंची कुल संख्या में 60 से 70 प्रतिशत तक छात्र नौजवान थे। हजारों नौजवानों का मुद्दे के साथ गहरे ताल्लुकात रखता हुआ जुड़ाव इस बात का साक्षी था कि वे नौजवानों को नशों की लत लगाकर बर्बाद कर देने और सामाजिक भूमिका से अनुपस्थित कर देने से शासक वर्गीय मनसूबों में सफल नहीं होने देंगे।
चल रहे इस संघर्ष में से समाज का कोई भी तबका गौण नहीं रह सका। सभी तबके इस संघर्षशील गांव का भाग बनकर राज्य के अंदर संगठनों कि इस बढ़ रही साझेदारी के संकेत दे रहे हैं। इस नजरिए से जनवादी लोक लहर में यह बढ़ती साझेदारी एक सुखद घटना है।इस संघर्ष के साथ पंजाब में नए साझा जनवादी जनसंघर्षों का प्रचलन की आमद हुई है। किसानों मजदूरों छात्रों नौजवानों कर्मचारियों व अन्य भागों की साझेदारी ने ‘ मनजीत धनेर को रिहा करवाके रहेंगे’ की रोषपूर्ण गरज को ऊपर उठाया और सफलता प्राप्त की। इस संघर्ष ने शासकों को नाकों चने चबवा दिए, इसी की बदौलत ही शासकों को थूक कर चाटना पड़ा और देश की सबसे ऊंची अदालत सर्वोच्च न्यायालय को भी निर्णय जन अदालत के पक्ष में करना पड़ा।
लोगों की एकता के इस दबाव के तले ही आखिरकार 7 नवंबर को राज्यपाल को मनजीत धनेर की सजा रद्द करने हेतू मजबूर होना पड़ा और 14 नवंबर को 54 दिनों के कठोर संघर्ष के पश्चात मनजीत धनेर को जेल की सलाखों से बाहर निकालकर जन ताकत ने अपना वायदा पूर्ण किया, जो उसके साथ 30 सितंबर को पेशी के वक्त किया था कि ‘ जिन हाथों से तुम्हें यहां छोड़ने आए हैं, उन्हीं हाथों से तुम्हे यहां से छुड़वाकर लेके जाएंगे ’। मिसाल बने इस साझे जन संघर्ष ने देश के लोगों पर राज्यसत्ता द्वारा किए जा रहे प्रहार का मुंहतोड़ जबाव देकर नए मुकाम हासिल किए हैं, जनवादी लोक लहर के बीच बढ़ रही साझेदारी की मिसाल पेश की है और जन ताकत में विश्वास को और ज्यादा मजबूत किया है।

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