हम काग़ज़ नहीं दिखाएँगे!
हम एन.पी.आर. फ़ार्म नहीं भराएँगे!
लोक एकता जि़ंदाबाद!
सावधाान! एन.पी.आर. ही एन.आर.सी. है!
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) का बहिष्कार करो!
प्यारे लोगो,
भारत सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) की प्रक्रिया शुरू करने जा रही है। सरकारी टीमें घर-घर जाकर इसके प़फ़ार्म भरेंगी। एन.पी.आर. बेहद ख़तरनाक राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) की प्रक्रिया का पहला पड़ाव है। कानूनन ऐसा ही है, लेकिन जनता को गुमराह करने के लिए मोदी सरकार इससे इनकार करती रही है। प्रधानमंत्री ने तो यहाँ तक झूठ बोल दिया कि केंद्र सरकार की एन.आर.सी. की कोई योजना ही नहीं है। लेकिन अब मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित तौर पर कहा है कि एन.आर.सी. बनाना ही होगा। इस प्रकार मोदी हुकूमत का झूठ सरे-बाज़ार नंगा हो चुका है।
पंजाब की कांग्रेस सरकार एक तरफ़ तो जुबानी तौर पर सी.ए.ए.-एन.पी.आर.-एन.आर.सी. का विरोध करती है, लेकिन इसने विधान सभा में जो प्रस्ताव पारित किया है, उसमें यह नहीं कहा कि पंजाब में ये लागू नहीं किए जाएँगे। प्रस्ताव में सिर्फ मोदी सरकार को अपीलें की गई हैं कि सी.ए.ए. कानून और एन.पी.आर.-एन.आर.सी. के नियमों में बदलाव किया जाए। पंजाब सरकार ने जि़ला अधिकारियों को जारी पत्र में एन.पी.आर. पर अभी कार्रवाई न करने की बात करते हुए साफ़ कहा है कि एन.पी.आर. पर आगे चलकर फ़ैसला लिया जाएगा। इसका अर्थ है कि पंजाब की कांग्रेस सरकार भी एन.पी.आर. प्रक्रिया शुरू कर सकती है। हमें मोदी सरकार और पंजाब की कांग्रेस सरकार की चिकनी-चुपड़ी गुमराह करने वाली बातों में नहीं फँसना है और किसी भी हालत में सी.ए.ए.-एन.पी.आर.-एन.आर.सी. को रद्द करवाकर रहना है।
अगर एन.पी.आर.-एन.आर.सी. लागू होता है, तो जनता पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा। अपने, अपने माता-पिता, दादा-पड़दादा के जन्म की तारीख़-स्थान वग़ैरा के प्रमाणपत्र भारत के करोड़ों लोग कहाँ से लाएँगे? करोड़ों ग़रीब, मुसलमान, व अन्य अल्पसंख्यक (ईसाई, सिख आदि), जनवादी-क्रांतिकारी सामाजिक कार्यकर्ता, दलित, पिछड़े, आदिवासी, औरतें नागरिकता के काग़ज़ी सबूत नहीं पेश कर पाएँगे। उनके नागरिकता के अधिकार छीन लिए जाएँगे। उन्हें हिटलरी तर्ज पर बनीं जेलों में ठूँसा जाएगा (जो पूँजीपतियों के मुफ्त के मज़दूर बनेंगे)। नागरिकता न साबित कर पाने वाले हिंदुओं समेत छः धर्मों के लोगों को नागरिकता देने की बातें भी छलावा हैं। जो भारत के ही रहने वाले हैं, लेकिन जिनके पास नागरिकता साबित करने के लिए पूरे काग़ज़ नहीं हैं, वे क्यों लिखित तौर पर ख़ुद को पाकिस्तानी, बंगलादेशी या अफ़गानिस्तानी यानी विदेशी कहते हुए नागरिकता की माँग करेंगे? यह तो अपने पैर पर ख़ुद कुल्हाड़ी मारने वाली बात हुई। दूसरी बात, अगर कोई ऐसा करना भी चाहे तो वह साबित कैसे करेगा कि पहले वो पाकिस्तान, बंगलादेश या अफ़गानिस्तान का नागरिक था और वहाँ से उजड़कर भारत आया है? कितने लोग होंगे, जो लाखों रुपए की रिश्वतें देकर ऐसे नक़ली काग़ज़ बनवा पाएँगे? अगर किसी को इस तरीके से मिलने वाली नागरिकता मिल भी जाती है, तो कानून के मुताबिक़ यह दोयम दर्जे की नागरिकता होगी, जिसे सरकार आसानी से छीन सकती है।
पंजाब समेत देश-भर में सी.ए.ए.-एन.पी.आर.-एन.आर.सी. के खि़लाफ़ जुझारू आवाज़ बुलंद हो रही है। हुकूमत आंदोलन के भयानक दमन पर उतारू है। मोदी हुकूमत की सरपरस्ती में संघी गुंडा गिरोहों द्वारा दिल्ली में मुसलमानों के क़त्लेआम (जिसमें बेगुनाह हिंदू भी मारे गए हैं) का एक फ़ौरी मक़सद इस जनसंघर्ष को कुचलना है। लेकिन आम हिंदू-मुसलमान जनता ने बड़े स्तर पर भाईचारे का सबूत दिया है। जनता एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हुई है। अब भी जनता सी.ए.ए.-एन.पी.आर.-एन.आर.सी. के खि़लाफ़ संघर्ष के मैदान में डटी हुई है।
देशभर से एन.पी.आर. के बहिष्कार की आवाज़ें उठी हैं। पंजाब के मज़दूरों, किसानों, मुलाजिमों, नौजवानों, छात्रें के करीब डेढ़ दर्जन जनसंगठनों के संयुक्त मंच ने ऐलान किया है कि एन.पी.आर. लागू नहीं होने दिया जाएगा। इसके लिए जनता को लामबंद किया जा रहा है। एन.पी.आर. बहिष्कार लागू करवाने के लिए रैलियाँ, धरने, प्रदर्शन, घेराव किए जाएँगे। बहिष्कार कमेटियाँ बनाई जा रही हैं। एन.पी.आर. के फ़ार्म भरने के लिए आई वाली सरकारी टीमों को काले झंडे दिखाए जाएँगे, उनका घेराव किया जाएगा, उन्हें वापिस भेजा जाएगा।
बहुत सी पूँजीवादी राजनीतिक पार्टियाँ व अन्य संगठन कह रहे हैं कि सी.ए.ए. में बदलाव करके और एन.पी.आर.-एन.आर.सी. के नियम बदलकर इन्हें लागू किया जा सकता है। हमें इस जाल में फँसकर आंदोलन से पीछे नहीं हटना है। हमें नागरिकता कानून में किए गए ताज़ा संशोधनों और एन.पी.आर.-एन.आर.सी. को पूरी तरह रद्द करने, नज़रबंदी जेलें बंद करने, संघर्षशील जनता का दमन बंद करने तथा दमन के दोषियों को सज़ाओं से कम कुछ भी मंजूर नहीं। एन.पी.आर.-एन.आर.सी. किसी भी रूप में लागू हो, उससे जनता का भयानक उत्पीड़न होगा ही। करोड़ों लोगों के नागरिकता अधिकार छीने ही जाएँगे, उन्हें जेलों में ठूँसा ही जाएगा। दूसरी बात, इस समय ग़रीबी, बेरोज़गारी, छँटनी, तालाबंदियाँ, कम वेतन-आमदनी, देशी-विदेशी पूँजीपतियों द्वारा शोषण, बैंकों में रखा पैसा डूबना, स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा आदि से संबंधी अनेकों-अनेक समस्याएँ जनता की समस्याएँ हैं। नागरिकता या जनसंख्या रजिस्टर न होना कोई समस्या नहीं है। सी.ए.ए. कानून व इन रजिस्टरों से जनता की कोई समस्या दूर नहीं होने वाली है, बल्कि ये तो अब जनता की समस्या बन चुके हैं। एन.पी.आर.-एन.आर.सी. से सरकारी ख़ज़ाने पर पड़ने वाला भारी बोझ भी तो जनता पर ही डाला जाना है। इस समय देश में कोरोना बीमारी भी क़हर बरपा रही है। ज़रूरत तो इन सब समस्याओं को हल करने की है। लेकिन मोदी सरकार को जनता की समस्याओं के हल से कोई मतलब नहीं। इसे तो ‘‘हिंदू राष्ट्र’’ के छलावे में जनता को उलझाना है, देशी-विदेशी पूँजीपतियों की सेवा करनी है। इसलिए एन.पी.आर.-एन.आर.सी. जैसे घोर जनविरोधी, सांप्रदायिक, फासीवादी, जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाने वाले मुद्दों को उछाला जा रहा है। मोदी सरकार का धार्मिक कट्टरपंथी, जनवाद विरोधी, पूँजीपरस्त चेहरा एकदम नंगा हो गया है। हमें मोदी सरकार के इन तमाम फासीवादी हमलों के खि़लाफ़ संघर्ष के मैदान में डटे रहना है और फासीवादी हुकूमत को मिट्टी में मिलाकर ही दम लेना है। जो भी राज्य सरकारें, पार्टियाँ, संगठन आदि मोदी हुकूमत के प्रति नरम रवैया रखते हैं, जनता को गुमराह करते हैं, आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश करते हैं, हमें उनसे न सिर्फ ख़बरदार रहना होगा, बल्कि इस आंदोलन के अंदर उनके असर-रसूख को ख़त्म करके जनांदोलन को और मजबूत करना होगा।
आओ, एन.पी.आर.-एन.आर.सी. के खि़लाफ़ बहिष्कार मुहिम को जन-जन तक पहुँचाने के लिए, बहिष्कार लागू करवाने के लिए पूरा ज़ोर लगा दें। आओ संकल्प लें कि न तो हम ख़ुद एन.पी.आर. फ़ार्म भरवाएँगे, कोई काग़ज़ नहीं दिखाएँगे और दूसरों को भी इसके बारे में समझाएँगे, अपने मोहल्लों, बस्तियों, गाँवों में एन.पी.आर. बहिष्कार कमेटियाँ बनाएँगे, बहिष्कार लागू करवाएँगे।
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