लोक एकता जि़ंदाबाद! सांप्रदायिक फासीवाद मुर्दाबाद!
'नागरिकता संशोधन क़ानून’, जनसंख्या व नागरिकता रजिस्टर का विरोध करो!
घोर जनविरोधी सांप्रदायिक फासीवादी साजि़शों के खि़लाफ़ सड़कों पर उतरो!
'नागरिकता संशोधन क़ानून’ (सीएए), 'राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर’ (एनपीआर) व 'राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर’ (एनआरसी) के खि़लाफ़ देश-भर में आक्रोश है। हम मोदी सरकार द्वारा नागरिकता अधिकारों समेत तमाम जनवादी अधिकारों पर सांप्रदायिक फासीवादी हमले के सख़्त खिलाफ़ हैं और इसके विरुद्ध ज़ोरदार संघर्ष का ऐलान करते हैं और देश-भर में उठ रही जुझारू जनवादी आवाज़ों, संघर्षों को सलाम पेश करते हैं।
भारत को 'हिंदू राष्ट्र’ बनाने की घोर जनविरोधी नीति का विरोध करो
नागरिकता कानून व रजिस्टर भाजपा द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भारत को 'हिंदू राष्ट्र’ बनाने के घोर जनविरोधी सांप्रदायिक फासीवादी सपने को पूरा करने की तरफ कदम हैं जिसमें सिर्फ हिंदुओं को रहने का हक़ होगा और बाक़ी धार्मिक अल्पसंख्यकों को या तो देश छोडऩा पड़ेगा या फिर दोयम दर्जे का नागरिक बनकर रहना होगा। कहने की ज़रूरत नहीं कि धर्म के आधार पर बने किसी भी देश में राज तो धन्नासेठ ही करते हैं, गऱीब मज़दूरों-मेहनतकशों को तो गुलामी ही करनी पड़ती है। इसी के तहत कश्मीर से धारा 370 हटाने, 'तीन तलाक’ ख़त्म करने और राम मंदिर बनाने जैसे फैसले लागू किए गए हैं। सरकार ने वीज़ा शर्तों में भी धर्म के आधार पर बदलाव किए हैं।
'हिंदू राष्ट्र’ बनाने की नीति भारत के लुटेरे धन्नासेठों के हितों की सेवा करती है, जनता का नुकसान करती है। इस दौर में देश आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ा है, बेरोजग़ारी बढ़ी है, महँगाई का तो यह हाल है कि अनेकों रसोइयों में से प्याज़ अभी तक ग़ायब है। ऊपर से नोटबंदी, जीएसटी और कारपोरेटों को करों में बड़ी छूट देने जैसे फ़ैसलों ने लोगों का जीना और भी कठिन किया है। मज़दूरों के वेतन बढ़ नहीं रहे। सारे अधिकार छीने जा रहे हैं। उद्योगों में मज़दूरों के हालात बद से बदतर हैं। तालाबंदियाँ हो रही हैं, मज़दूरों की छँटनी हो रही है। करोड़ों नौकरियाँ खत्म हो गई हैं। बेरोज़गारों को काम मिल नहीं रहा। सरकार श्रम कानूनों में बदलाव करके मज़दूरों के रहे सहे कानूनी श्रम अधिकार भी छीन रही है। दलितों, स्त्रियों, आदिवासियों, दमित राष्ट्रीयताओं का शोषण-दमन लगातार बढ़ रहा है। इन हालातों के खिलाफ जनता का आक्रोश बढ़ता जा रहा। सरकार जनसंघर्षों से बुरी तरह डरी हुई है। इसलिए काले कानूनों, जेल, लाठी, गोली से, बर्बर दमन से जनता की आवाज़ कुचलने की कोशिश हो रही है। साथ ही धर्म के आधार पर बाँटकर हुक्मरानों की जनविरोधी नीतियों के खि़लाफ जनता की वर्गीय एकता और संघर्ष को कमजोर करने की साजि़श रची गई है। मोदी-शाह सरकार के नागरिकता कानून व रजिस्टर सरकार की इसी सांप्रदायिक नीति का हिस्सा है। 'हिंदू राष्ट्र’ की पूरी योजना मज़दूरों, मेहनतकशों, दलितों, आदिवासियों, स्त्रियों, असवर्णों, दमित राष्ट्रीयताओं, लोक भाषाओं को लूटने-दबाने-कुचलने की योजना है। इसके खि़लाफ जनता को एकजुट होकर मोदी-शाह हुकूमत को मुँह तोड़ जवाब देना होगा।
नागरिकता कानून व रजिस्टर के लागू होने से क्या-क्या होगा?
'राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर’ (एनआरसी) का पहला प्रयोग असम में हुआ। 19 लाख नागरिकों को दस्तावेज़ों में ग़लतियांँ निकालकर विदेशी करार दे दिया गया। इनमें से 14 लाख हिंदू थे। अब 'नागरिकता संशोधन क़ानून’ (सीएए) लाया गया है जिसके तहत अफग़ानिस्तान, बंगलादेश और पाकिस्तान से आए हिंदुओं, सिक्खों, जैनियों, बौद्धों, पारसियों और इसाइयों को नागरिकता दी जाएगी, लेकिन मुसलमानों को नहीं। अब मोदी सरकार द्वारा लाया गया 'राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर’ (एनपीआर) और कुछ नहीं बल्कि पूरे भारत में 'राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर’ लागू करने का ही पहला चरण है। इस प्रक्रिया के तहत नागरिकता साबित करने के लिए भारत में रहने वाले तमाम लोगों को नागरिकता के सबूत देने होंगे। करोड़ों लोगों को लाइनों में लगा दिया जाएगा। भारत में करोड़ों की संख्या में गरीब, अनपढ़, बाढ़-दंगों-कत्लेआमों के कारण उजाड़े का शिकार, बेघर व अन्य लोग हैं जिनके पास भारत का नागरिक होने के बावजूद भी पूरे दस्तावेज़ नहीं हैं या बुरी हालत में हैं, या उनमें नामों-पतों आदि की गलतियाँ हैं। ऐसे लोग भी हैं जो बंगलादेश जैसे देशों से दंगों-कत्लेआमों-आपदाओं आदि के चलते उजड़कर आए हैं जो बेहद गऱीब हैं, तबाही-बरबादी का शिकार हैं। ऐसे लोग भारत में दशकों से रह रहे हैं व भारत के नागरिक हैं। इन तमाम लोगों को दस्तावेज़ जुटाने के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी। अफसरशाही-नौकरशाही को घूस चढ़ानी पड़ेगी। बड़े स्तर पर परेशानी झेलनी पड़ेगी। असम में यही सब हुआ है। यह सब हर नागरिक के साथ होने जा रहा है। नोटबंदी से भी भयानक हालत बनने जा रहे हैं। नागरिकता न साबित कर पाए गैर-मुस्लिमों को (हिंदुओं को भी) यह साबित करना होगा कि वे छह वर्ष से पाकिस्तान, बंगलादेश या अफगानिस्तान से आकर भारत में रह रहे हैं। जो मुस्लिम और गैर-मुस्लिम लोग उपरोक्त शर्तें पूरी नहीं कर पाएँगे उन्हें विदेशी कहकर बंदी केंद्रों में ठूँसा जाएगा। गैर-मुस्लिमों में खासकर ईसाइयों, सिक्खों, दलितों, गैर-सवर्णों, आदिवासियों पर भारी मुसीबतों का पहाड़ टूटने वाला है। राज्य सत्ता की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों को भी जानबूझकर नागरिकता सूची से बाहर किया जाएगा।
अकेले असम में नागरिकता रजिस्टर पर 1800 करोड़ का खर्चा हुआ है। पूरे देश में इसे लागू करने के लिए दर्जनों गुणा खर्च आएगा जिसका बोझ टेक्स बढ़ाकर, सरकारी सुविधाएँ छीनकर जनता पर ही डाला जाएगा।
जनता संघर्षों की और सत्ता दमन की राह पर
दिसंबर से सरकार की नागरिकता नीति के खिलाफ जनता सड़कों पर हैं। दिल्ली का शाहीन बाग इस नागरिकता नीति के खिलाफ पक्का मोर्चा बना चुका है। देश में जगह-जगह शाहीन बाग जैसे पक्के मोर्चे शुरू हो रहे हैं। रैलियों में लाखों-लाख लोग शामिल हो रहे हैं, फासीवादी-दमनकारी मोदी-शाह हुकूमत को ललकार रहे हैं।
जनता के सड़कों पर उतरने के बाद करोड़ों की मैंबरशिप वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 'नागरिकता संशोधन कानून’ के हक में रैलियाँ शुरू की थीं जो कि असफल ही साबित हुई हैं। यह सब इस बात का संकेत है कि जनता ने समझना शुरू कर दिया है कि रोज़ी-रोटी, रोजग़ार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं, सांप्रदायिक भाईचारा कायम रखने के लिए, सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ संघर्ष व अन्य मुद्दे जनता के वास्तविक मुद्दे हैं। बेशक इस सांप्रदायिक फासीवादी राजनीति के चंगुल में फँसी एक बड़ी आबादी भी मौजूद है जिसे जितना जल्द हो सही राह पर लाना होगा।
मोदी हुकूमत जनसंघर्ष के दमन की राह पर है। पुलिस दमन में कितने ही लोग मारे जा चुके हैं, गंभीर रूप से जख्मी हैं, हज़ारों गिरफ़्तार हैं, गायब कर दिए गए हैं। पुलिस, भाजपा-संघ के कार्यकर्ता खुद इमारतों, वाहनों की तोड़-फोड़-आगजनी करके लोगों को बदनाम कर रहे हैं। दिल्ली में अब रासुका नामक काला कानून थोप दिया गया है यानी अब पूरी तरह बेशर्म होकर मोदी सरकार हिटलर राज थोप रही है।
सरकार की नागरिकता नीति के खिलाफ पंजाब के मज़दूरों, किसानों, नौजवानों, छात्रों केे बारह संगठनों - नौजवान भारत सभा (ललकार), टेक्सटाईल हौज़री कामगार यूनियन, कारखाना मज़दूर यूनियन, पी.एस.यू. (ललकार), भाकियू (उगराहां), भाकियू (डकौंदा), पंजाब खेत मज़दूर यूनियन, मोल्डर एंड स्टील वर्कर्ज यूनियन, नौजवान भारत सभा, पी.एस.यू. (शहीद रंधावा), टी.एस.यू., किसान संघर्ष कमेटी ने पंजाब स्तरीय संयुक्त अभियान चलाने का ऐलान किया है और माँग की है कि नागरिकता संशोधन कानून, जनसंख्या व नागरिकता रजिस्टर रद्द हो, बंदी केंद्र बंद हों, संघर्षशील जनता का दमन बंद हो, दिल्ली से काला कानून रासुका हटाया जाए, गिरफ़्तार लोगों को रिहा किया जाए, विश्वविद्यालयों में छात्रों पर हमले के दोषियों पर सख़्त से सख़्त कार्रवाई हो। पंजाब में सघन प्रचार अभियान, जगह-जगह सम्मेलनों, रोष प्रदर्शनों आदि के बाद पंजाब स्तरीय विशाल रोष प्रदर्शन होगा। सभी जनवादी, इंसाफपसंद लोगों से अपील है कि हक, सच, इंसाफ के लिए इस संघर्ष में ज़ोरदार भागीदारी करें।
16 फरवरी को मलेरकोटला में 11 बजे पंजाब स्तरीय विशाल रोष प्रदर्शन में पहुँचो!
जारीकर्ता-
नौजवान भारत सभा,
कारखाना मज़दूर यूनियन,
टेक्सटाइल हौज़री कामगार यूनियन,
पी.एस.यू. (ललकार)
प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स यूनियन (हरियाणा ईकाई)
प्रकाशक - छिंदरपाल (98884-01288), राजविंदर (98886-55663), गुरप्रीत (98887-89421), पावेल (86078-89902)